मंगलवार, 15 जुलाई 2014

सावन मे आस्था को ढोते कांवरिए






( L. S. Bisht ) - कंधे पर रंग बिरंगे कांवर, उसमे गंगा जल ढोते, रास्ते भर भक्ति और आस्था मे सराबोर नारे । शिवभक्तों की इस भीड को देख सोचना पडता है कि आखिर इनमे कौन सी शक्ति है । बच्चे, बूढे, स्त्री-पुरूष सभी नंगे पैर, पथरीली कच्ची-पक्की सडक पर नदी-नाले पार करते हुए, अंतत: सही समय तक तय कर ही लेते हैं अपना सफर । पांव मे फफोले, पैरों की ऐंठन, जख्म और तलवों की जलन, किसी की भी परवाह न करते हुए भगवान शंकर को अपना जल चढा कर ही दम लेते हैं ।
अटूट आस्था और भक्ति भावना से ओत प्रोत रंग बिरंगी झंडियों, फूल मालाओं से सजी अपनी कांवरों मे रखे ताम्रघट मे यह गंगाजल लेकर चल पड्ते हैं शिव को अर्पित करने के लिए ।माना जाता है कि सावन के महीने में भगवान शंकर का जलाभिषेक करना एक अलग महत्व रखता है । इनमे कठिन यात्रा की यह शक्ति है भक्ति और अटूट आस्था की । हमारे धर्म ग्रंथों मे इस बात का उल्लेख कई जगह मिलता है कि शिव भक्ति से मनोकामनाओं की पूर्ति सहज हो जाती है ।
शिव भक्तों की इस भक्ति और आस्था का एक कारण भगवान शंकर का सरल, सहज और दानी स्वरूप का होना भी है । अगर पल भर मे वह क्रोधित हो तांडव नृत्य कर सकते हैं तो भक्ति भावना से प्रशन्न हो कुछ भी देने मे जरा भी संकोच नही करते । रावण की भक्ति से प्रशन्न होकर उसे अमोघ शक्ति देने वाले तथा भस्मासुर को वर प्र्दान करने वाले भी यही भगवान शंकर हैं ।
इन भोले भंडारी में भारतीय जनमांनस की आस्था की जडें बहुत गहरी हैं । प्रत्येक काल मे यह श्रध्दा का केन्द्र रहे हैं । इन्हें नाराज करने का साहस देवताओं मे नही है । भगवान राम के अनन्य भक्त व रामचरित मानस जैसे महान ग्रंथ के प्रणेता तुलसीदास ने भी शिव वदंना की है ।
भवानी शंकरौ वंदे
श्रध्दाविश्वास रूपिणैं
याम्यां बिना न पश्यंति सिध्दा :
स्वान्त: स्थमीश्वरम ।
कंधों पर आस्था को ढोने वाले इन शिवभक्त कांवरियों का सबसे बडा मेला बिहार के वैधनाथ धाम मे लगता है । यहां सावन के महीने मे श्रावणी मेला के अवसर पर तथा शिवरात्रि मे लाखों कांवरियों की आस्था देखते बनती है । सुदूर गांव- कस्बों से चल कर अपना जल अर्पित करने यहां आते हैं ।
पदमपुराण के अनुसार रावण की कठिन तपस्या से प्रशन्न होकर भगवान शंकर ने अपने बारह ज्योतिर्लिगों में प्रमुख "कामना लिंग" रावण को वरदान स्वरूप दिया । परंतु इसके साथ यह शर्त भी थी कि जमीन पर रखने पर यह उसी स्थान मे स्थापित हो जायेगा । परंतु देवताओं ने चाल चली । रास्ते मे रावण को लघुशंका का आभास हुआ । वह ज्योतिर्लिंग एक ब्राहाम्ण को सौंप कर लघुशंका से निवृत्त होने के लिए कुछ कदम आगे बढा ही था कि ब्राहाम्ण के भेष मे खडे भगवान विष्णु ने वह ज्योतिर्लिंग पृथ्वी पर रख दिया तथा अंतरध्यान हो गये । तब से यह रावणेश्वर वैधनाथ के रूप मे पूजा जाता है ।
इस बारे मे एक और पौराणिक कथा भी है । सतयुग मे दक्ष की पुत्री तथा शिव की पत्नी सती ने अपने पिता के दवारा अपमान किए जाने पर आत्महत्या कर ली थी । भगवान शंकर क्रोधित हो ताडंव नृत्य करने लगे । तब भगवान विष्णु ने अपने चक्र दवारा सती के शरीर को 52 टुकडों मे खंडित कर दिया । यह अंग देश के विभिन्न हिस्सों मे गिरे । माना जाता है कि सती का ह्रदय इस स्थान पर गिरा था । इसीलिए इस भूमि को ह्र्दयपीठ भी कहा जाता है ।
उत्तरप्रदेश के ही बाराबंकी जिले मे लोधेश्वर महादेव के मंदिर में आसपास जिले के कांवरिए कठिन यात्रा पूरी करते हुये अपना जल भगवान शंकर को अर्पित करते हैं । यहां अपनी मनोकामनाएं लेकर आने वाले इन शिवभक्तों की संख्या बहुत अधिक है । माना जाता है कि इस शिवमंदिर की स्थापना महाभारत काल मे पांडवों दवारा की गई थी । यहां भक्तों की बढती संख्या को देखते हुए आयोजित किए जाने वाले मेले की प्रबंध व्यवस्था जिला प्रशासन ने अपने हाथों मे ले ली है ।
बुलंदशहर स्थित नानकेशवर मंदिर भी आसपास जिलिं के शिवभक्तों की आस्था का केन्द्र है । यहां भी हजारों की संख्या मे कांवरिए जल अर्पित करने आते हैं ।
यह यात्रा भी तीन प्रकार की होती है । सामान्य यात्रा, खडी कांवर तथा डाक कांवर यात्रा । सामान्य के लिए समय सीमा का बंधन नही होता । यात्रा सुविधानुसार कितने ही दिनों मे पूरी की जा सकती है । खडी यात्रा मे कांवरिये थोडी देर के लिए विश्राम कर सकते हैं । लेकिन कांवर को नीचे नही रख सकते । कोई अन्य शिवभक्त ही उसे अल्प समय के लिए ढो सकता है । डाक कांवर यात्रा सबसे कठिन तपस्या है । इसमें कांवर उठा लेने के चौबीस घंटों के अंदर बिना विश्राम किए यात्रा पूरी करनी पडती है । इस यात्रा को करने वालों को "डाक बम " कहा जाता है ।
इस कठिन तपस्या के पीछे है इन लोगों की अटूट भक्ति । यह शिवभक्ति ही इन्हें यात्रा के कष्टों से उपजी पीडा से  मुक्त रखती है । मन मे भगवान शिव की आस्था लिए हर साल गंगा जल लेकर निकल पड्ते हैं - सडक, जंगल , गांव कस्बों से होते हुए अपनी मंजिल की तरफ । भक्ति की यह धारा उनके मन-ह्र्दय मे हमेशा प्रवाहित होती है साल-दर-साल ।

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