शनिवार, 23 अगस्त 2014

पैसा और ग्लैमर डस रहा है क्रिकेट को

   

 ( L. S. Bisht ) -  इंग्लैंड में भारतीय क्रिकेट खिलाडियों ने जिन्हें देश मे भगवान का दर्जा प्राप्त है जो शर्मनाक प्रदर्शन किया उसने फ़िर देश में क्रिकेट को लेकर कई सवाल खडे किए हैं | सबसे अमीर कहा जाने वाला भारतीय क्रिकेट बोर्ड की अंदरूनी राजनीति, खिलाडियों का चयन और उनका मैदान में प्रदर्शन फ़िर कटघरे में है | लेकिन हमेशा की तरह गंभीर सवालों और चिंताओं पर बोर्ड ने एक बार फ़िर मिट्टी डालने का काम बखूबी किया है |
     टेस्ट सीरीज में भारतीय खिलाडियों ने जिस तरह से आत्मसमर्पण किया उससे न सिर्फ़ भारतीयों का सिर नीचा हुआ अपितु विदेशी मीडिया के ताने सुनने को भी मजबूर होना पडा | लेकिन बोर्ड ने आलोचना से बचने के लिए आनन-फ़ानन में कमेंट्री करने वाले रविशास्त्री को भारतीय क्रिकेट टीम का निदेशक नियुक्त कर दिया और डंकन फ़्लेचर को एक तरह से अधिकारविहीन कर, जाने के संकेत दे दिये हैं | इसके अलावा अपने कुछ चेहतों को कोचिंग स्टाफ़ में शामिल कर लिया है |
     देखा जाए तो बोर्ड की यह कवायद आग लगने पर कुआं खोदने जैसी है | उसे पता है कि कुछ समय बाद यह आग स्वत: ठंडी पड जायेगी और फ़िर सब्कुछ सामान्य दिखने लगेगा | इस खेल के भविष्य और खिलाडियों के गैर जिम्मेदाराना पहलू पर बोर्ड गंभीरता से सोचने की जहमत नही उठाना चाहता | दर-असल जडों को खोदने पर स्वयं वह कटघरे में खडा दिखाई देगा |
     देखा जाए तो क्रिकेट में पैसे और ग्लैमर के बढते प्रभाव ने इस खेल की नींव को खोखला करना शुरू कर दिया है | अब अस्सी या नब्बे के दशक का क्रिकेट नही रहा जब पैसे को नही खेल को महत्व दिया जाता रहा और खिलाडियों के लिए भी पैसा ही सबकुछ नही हुआ करता था |
     आई पी एल ने जिस तरह से इस खेल को करोडों के खेल मे तब्दील कर दिया उसने इस खेल के स्वरूप को भी बहुत हद तक बदला  है | इसने खिलाडियों की सोच में देश भावना को नहीं बल्कि पैसे की भावना को जागृत करने का काम किया है | खिलाडियों का सारा ध्यान क्रिकेट के इस बाजार पर केन्द्रित होकर रह गया है | अब इनका एकमात्र मकसद इसमें अच्छा प्रदर्शन कर अधिक से अधिक रकम पर हाथ साफ़ करना है न कि क्रिकेट में देश का नाम ऊंचा करना | ग्लैमर व विज्ञापनों के तडके ने इस क्रिकेट सर्कस को और भी जायकेदार बना दिया है |
     देखने वाली बात यह है कि खेल के इस संस्करण का मूल चरित्र ही ताबडतोड, बेफ़्रिक बल्लेबाजी है जिसमें तकनीक की कोई खास जरूरत भी नहीं | छ्क्के और चौकों की बरसात पैसे और विज्ञापनों की दुनिया का दरवाजा भी खोलती है और इस रंगीन दुनिया मे भला कौन नही आना चाहेगा | सही मायनों में खेल की इस शैली ने क्रिकेट की नींव को खोदने का काम बखूबी किया है | यह सोच पाना ज्यादा मुश्किल नही कि आई पी एल खेलने वाले यह धुरंधर टेस्ट मैच कितना अच्छा खेल पायेंगे जिसमे तकनीक, दमखम और धैर्य की असली परीक्षा होती है |
     यहां गौरतलब यह भी है कि अब भारतीय टीम के चयन का आधार भी यही आई पी एल सर्कस बन गया है | यहां जिस खिलाडी ने धूम मचा दी उसका भारतीय टीम में भी चयन लगभग पक्का है | अभी हाल में भारतीय टीम मे जितने नये चेहरे शामिल किए गये हैं वह सभी इस जमीन से ही आये हैं | यह अब भारतीय क्रिकेट की जडों को खोखला करने लगा है |  टेस्ट संस्करण  तो भारी संकट मे  है | इस प्रारूप मे हमारी विश्व रैंकिंग लगातार गिरती जा रही है |
     इस संबध मे इंग्लैंड के पूर्व कप्तान माइकल वान का कहना बिल्कुल सही लगता है कि भारत के युवा क्रिकेटरों को आई पी एल के दायरे से बाहर निकल कर काउंटी क्रिकेट खेलना चाहिए | उन्हें लीग की कशिश और बेशुमार कमाई के दायरे से बाहर निकलकर बाहर की बडी दुनिया से बाबस्ता होना पडेगा |
     दूसरी तरफ़ इंग्लैंड के ही पूर्व कप्तान स्टीवर्ट की बात भी कहीं से गलत नही लगती कि फ़्लैचर भारतीय बल्लेबाजों के बदले बैटिंग नहीं कर सकते | वह अपना ज्ञान बांट सकते हैं | लेकिन बैट बैट्समैन पकडते हैं और मैदान पर उन्हें ही खेलना होता है | कोच खिलाडियों को तैयार करता है और उन्हें प्र्दर्शन करना होता है | भारतीय खिलाडी प्रदर्शन नही कर पाए |
     इसमें कोई संदेह नही कि यह स्थिति बनी रहेगी जब तक हम अपने गिरेबां मे झांकने का ईमानदार प्रयास नहीं करेंगे | हमें यह मानना ही पडेगा कि हमारे खिलाडियों के लिए पैसा, विज्ञापन और ग्लैमर देश के सम्मान से ज्यादा महत्वपूर्ण हो गया है | इन्हें इस संबध मे कडा संदेश देना ही होगा कि देश के सम्मान और भावनाओं से खिलवाड बर्दाश्त नहीं किया जायेगा |
     अब समय आ गया है कि खेल के तीनों प्रारूपों की कप्तानी पर भी नये सिरे से सोचा जाए | टेस्ट प्रारूप मे धोनी  अच्छे कप्तान कतई नही हैं लेकिन बोर्ड मे अपनी अच्छी पकड के कारण वह अभी तक बने हुए हैं | समय के साथ साथ वह एक अडियल और जिद्दी कप्तान ज्यादा दिखने लगे हैं जो भारतीय क्रिकेट के हित मे नहीं है | टीम के लिए खिलाडियों के चयन का आधार आई पी एल तो कतई नही हो सकता | इसके लिए एक निष्पक्ष नीति बनानी होगी जो सभी प्रकार के दबाबों से मुक्त हो | अगर ठोस कदमों की पहल न की गई तो भारतीय क्रिकेट अपनी ही बुराईयों के भार से अपनी चमक खो देगा |


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