बुधवार, 21 अक्तूबर 2015

राजनीति तुझ पर ही क्यों लिखूं

(एल.एस. बिष्ट ) - राजनीति ने लील लिये आसमां कैसे कैसे । संतों को शैतान और शैतानों को नरपिशाच बना दिया । क्रांति की मसाल लिए हाथों को सत्ता का चाटुकार बना दिया । न जाने कितने खूबसूरत सपनों को अकाल मौतों का फरमान सुना दिया । फूलों के उपवनों को शमशान मे बदल दिया और तो छोडिये जनाब इंसान को हैवान बना कर भाई को भाई का दुश्मन बना दिया । इसलिए आज ऐसी राजनीति पर कोई पोस्ट नही ।
आज सिर्फ प्यार की बातें और उसकी मीठी यादें । आदिम युग से चले आ रहे उस प्यार की जिसने जिंदगी को जिंदगी मे ढाला । जिसका नशा जब भी जिस पर  चढा वह दुनिया को भूला और उस भूलभूल्लैया मे भी प्यार को न भूला ।
लिखना ही है तो पहले प्यार की उस पहली चिट्ठी पर लिखूं  जो कभी भुलाये नही भूलती । उस स्नेहिल स्पर्श पर कुछ लिखूं जिसकी छुअन का एहसास बरसों बरस बाद भी ताजे फूलों की खुशबू सी लगे ।
प्यार पर न सही तो उदासियों पर कुछ लिखूं.....कुछ आंसूओं पर...जिनमें दर्द का समंदर है । सरसराती हवाओं मे जिंदगी के गीत को सुनूं और दरिया के बहते हुए पानी के मानिंद जिंदगी की तासीर पर कुछ लिखूं । लहरों की चंचलता मे छिपे जिंदगी के उत्साह के संदेश को पढूं । कुछ उन बिखरते रिश्तों के दर्द पर लिखूं जिन्हें बद्लते जमाने की बदली हवा ने डस लिया । दिल से जुडे उन कोमलतम जज्बातों पर भी जिन्हें न जाने किसकी नजर लग गई ।
कुछ स्याही उन बिखरे सपनों के काफिले के लिए भी जो जिंदगी के सफर मे कहीं पीछे छूट चले  । भीड से अलग  बिसरते उन चेहरों पर कुछ लिखूं जिनकी यादें जिंदगी का संबल बनीं । लिखने के लिए जब भरा पूरा आकाश हो तो फिर स्याही, कालिख और चेहरे पर ही क्यों लिखूं ? इसलिए राजनीति आज तेरे भदेस चेहरे पर दो शब्द भी नही । बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक विजयदशमी की पूर्वसंध्या पर तेरे बदरंग होते चेहरे की शिकस्त की कामना के साथ ........मेरे सभी मित्रों को हार्दिक शुभकामनाएं 

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