मंगलवार, 27 फ़रवरी 2018

वसंतोत्सवों का चरम है होली


साहित्य में कामदेव की कल्पना एक अत्यन्त रूपवान युवक के रूप में की गई है और ऋतुराज वसंत को उसका मित्र माना गया है ।कामदेव के पास पांच तरह के बाणों की कल्पना भी की गई है ।य़ह हैं सफेद कमल, अशोक पुष्प, आम्रमंजरी, नवमल्लिका, और नीलकमल । वह तोते में बैठ कर भ्रमण करते हैं । संस्कृत की कई प्राचीन पुस्तकों में कामदेव के उत्सवों का उल्लेख मिलता है ।
इन उल्लेखों से पता चलता है कि प्राचीन भारत में वसंत उत्सवों का काल हुआ करता था । कालिदास ने अपनी सभी कृतियों में वसंत का और वसंतोत्सवों का व्यापक वर्णन किया है । ऐसे ही एक उत्सव का नाम था मदनोत्सव यानी प्रेम प्रर्दशन का उत्सव ।यह कई दिनों तक चलता था ।राजा अपने महल में सबसे ऊंचे स्थान पर बैठ कर उल्लास का आनंद लेता था । इसमें कामदेव के वाणों से आहत सुंदरियां मादक नृत्य किया करती थीं । गुलाल व रंगों से पूरा माहैल रंगीन हो जाया करता था । सभी नागरिक आंगन में नाचते गाते और पिचकारियों से रंग फेकते (इसके लिए श्रंगक शब्द का इस्तेमाल हुआ है } नगरवासियों के शरीर पर शोभायामान स्वर्ण आभुषण और सर पर धारण अशोक के लाल फूल इस सुनहरी आभा को और भी अधिक बढ़ा देते थे । युवतियां भी इसमें शामिल हुआ करती थीं इस जल क्रीड़ा में वह सिहर उठतीं (श्रंगक जल प्रहार मुक्तसीत्कार मनोहरं ) महाकवि कालिदास के “कुमारसंभव” में भी कामदेव से संबधित एक रोचक कथा का उल्लेख मिलता है ।

     इस कथा के अनुसार भगवान शिव ने कामदेव को भस्म कर दिया था तब कामदेव की पत्नी रति ने जो मर्मस्पर्शी विलाप किया उसका बड़ा ही जीवंत वर्णन कुमारसभंव में मिलता है ।  

     अशोक वृक्ष के नीचे रखी कामदेव की मूर्ति की पूजा का भी उल्लेख मिलता है । सुदंर कन्याओं के लिए तो कामदेव प्रिय देवता थे । “रत्नावली” में भी यह उल्लेख है कि अंत;पुर की परिचारिकाएं हाथों में आम्रमंजरी लेकर नाचती गाती थीं ।यह इतनी अधिक क्रीड़ा करती थीं लगता था मानो इनके स्तन भार से इनकी पतली कमर टूट ही जायेगी ।

     “चारूदत्त” में भी एक उत्सव का उल्लेख मिलता है । इसमें कामदेव का एक भब्य जुलूस बाजों के साथ निकाला जाता था । यहीं यह उल्लेख भी मिलता है कि गणिका वसंतसेना की नायक चारूदत्त से पहली मुलाकात कामोत्सव के समय ही हुई थी ।

     बहरहाल यह गुजरे दौर की बातें हैं । कामदेव से जुड़े तमाम उत्सव अतीत का हिस्सा बन चुके हैं और समय के साथ सौंदर्य और मादक उल्लास के इस वसंत उत्सव का स्वरूप बहुत बदल गया है । अब इसका स्थान फुहड़ता ने ले लिया है ।अब कोई किसी से प्रणय निवेदन नही बल्कि जोर जबरदस्ती करता है और प्यार न मिलने पर एसिड फेकता है । प्यार सिर्फ दैहिक आकर्षण बन कर रह गया है । कामदेव के पुष्पवाणों से निकली मादकता, उमंग, उल्लास और मस्ती की रसधारा न जाने कहां खो गई ।

गुरुवार, 22 फ़रवरी 2018

नाकाम मोहब्बत की एक दास्तां / मधुबाला (पुण्य तिथि 23 फरबरी )



“ हमे काश तुमसे मुहब्बत न होती, कहानी हमारी हकीकत न होती .........



शायद यह किसी को भी न पता था कि सिनेमा के परदे पर अनारकली बनी मधुबाला पर फिल्माया यह गीत उनकी असल जिंदगी का भी एक दर्दनाक गीत बन  जाएगा  और बेमिसाल हुस्न की मलिका की जिंदगी नाकाम मोहब्बत की एक दर्दनाक  दास्तां  | लेकिन ऐसा हुआ | आखिरकार  तन्हा जिंदगी को समेटे “  पूरब की वीनस “  कही जानी वाली अपार सौंदर्य की इस मालिका ने  23 फ्रबरी 1969 को इस दुनिया को अलविदा कहा था | लेकिन एक दौर गुजर जाने के बाद भी , मुझ जैसे करोड़ों सिने प्रेमियों की यादों मे वह आज भी जिंदा हैं |

       एक अजीब इत्तफाक ही तो है कि 14 फरबरी यानी वेलेंटाइन डे पर इस दुनिया मे आने वाली इस बेमिसाल अदाकारा को न सिर्फ ताउम्र प्यार के लिए तरसना पड़ा बल्कि वह नाकाम मोहब्बत के दंश ताउम्र झेलती रहीं |

       कहते हैं कमाल अमरोही की मोहब्बत मे चोट खाई मधुबाला ने दिलीप कुमार को जुनून की हद तक चाह और प्यार किया लेकिन एक मोड पर आकर यह दास्तान-ए-मोहब्बत भी दफन हो गई और इसी के साथ मधुबाला की तमाम हसरतें भी |

       यह बहुत कम लोग जानते हैं कि सिल्वर स्क्रीन की इस मालिका को जिसने हिंदी सिनेमा की आज तक की सबसे बेमिसाल फिल्म मुगल-ए-आजम मे अनारकली का कभी न भूल सकने वाला किरदार निभाया , जीते जी कोई पुरस्कार नही मिला |  भाग्य का सितम देखिये कि एक ऐसी अदाकारा  जिसने शौक से नही बल्कि अपनी गरीबी से निजात पाने और घर चलाने के लिए नौ वर्ष की उम्र मे सिनेमा की दुनिया मे कदम रखा , उसे जिंदगी के आखिरी कुछ साल अपनी बीमार काया के साथ बिस्तर पर गुजारने पड़े | दर-असल उनके दिल मे एक छेद था और वह उन्हें मौत के आगोश तक ले आया | मात्र 36 वर्ष की उम्र मे हुस्न की इस मलिका को  इस दुनिया से अलविदा कहना पड़ा  | 

       बेशक वह अब इस दुनिया मे नही हैं लेकिन आज भी मोहब्बत मे नाकाम प्रेमियों की उदासियों मे उनकी  दर्दभरी यह आवाज सुनाई देती है....... मोहब्बत की झूठी कहानी पे  रोये , बड़ी चोट खाई जवानी मे रोये | विनम्र श्र्ध्दांजलि |  

मंगलवार, 20 फ़रवरी 2018

लड़की की आंखों मे लट्टू होता मीडिया


एक लड़की ने आंख क्या मारी पूरा देश मानो उसका दीवाना हो गया | अपने को जिम्मेदार चौथा खंभा कहने वाले भारतीय मीडिया को तो मानो मन मांगी मुराद मिल गई हो | वह आंख मारने के तौर तरीकों, किस्मों और उसके विशेष प्रभावों पर चौपाल लगाने लगा | बड़े बड़े मुद्दे पीछे छूट गए | यहां तक की सीमा पर रोज-ब-रोज शहीद होते जवानों और उसके बीच पाकिस्तान की गीदड़ भभकी , यह सब कहीं भुला दिये गए | सबसे महत्वपूर्ण खबर बन गई प्रिया प्रकाश नाम की लड़की का आंख मारना |
       प्रिंट मीडिया भी कहीं पीछे नही दिखा | शायद ही कोई अखबार रहा हो जिसमे उसकी फोटो न छपी हो | यही नही, सोशल मीडिया ने तो वह धूम मचा दी की पूरा फेसबुक, टिवटर और वाटसएप प्रिया प्रकाश के ही रंग मे सराबोर हो गया |परिणामस्वरूप एक लड़की जिसे कोई ठीक से जानता तक नही था , कुछ ही घंटों मे सेलीब्रेटी बन गई | उसकी थर्ड ग्रेड दक्षिण भारतीय फिल्मों  के वितरण के लिए होड सी मचने लगी  | निर्माता उसके घर के चक्कर लगाने लगे | उसे स्कूल  मे पढ़ाने वाले टीचर तक उसके गुरू होने पर गर्व करते हुए इंटरव्यू देने लगे | देश भर मे उसकी हम  उम्र की लड़कियां उसके भाग्य से ईषर्या करने लगीं  |
       ऐसा पहली बार नही हुआ | कोलावरी डी गाने से लेकर बेवफा सोनम गुप्ता तक की यही कहानी है | लेकिन जब ऐसी बातों से रातों रात स्टार बनने के लिए देश भर मे लड़कियां ऊंटपटांग हरकते करने लगेंगी , तब यही प्रिंट , इलेक्ट्रानिक और सोशल मीडिया गहरी चिता जताने लगेगा और उसे सांस्क्र्र्तिक प्रदूषण का नाम भी देगा | सारा दोष लड़कियों पर मढ़ते हुए यह  भूल जाएगा की आखिर ऐसे मामलों मे उसने किस ज़िम्मेदारी का परिचय दिया है  और कैसी भूमिका निभाई | सच कहा जाये तो सोशल मीडिया सहित प्रिंट व इलेक्ट्रानिक मीडिया का यह चरित्र जाने- अनजाने बेहूदेपन को ही बढ़ावा दे रहा है | इसे महसूस किया जाना चाहिए |